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वो समाजवादी साहू हैं / रामकुमार कृषक

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वो समाजवादी साहू हैं
पूछ न उनकी बात ... रे भैया ...
पूछ न उनकी बात,

हमको तो हर सावन सूखा
उन्हें जेठ बरसात ... रे भैया ...

बड़े - बड़े आंसू हैं उनके
छोटे - छोटे नैन
औरों के दुख - दर्द ज़रूरी
बहकर पाते चैन,

उनके कारन जिएँ - मरें जो
होंगे उनके साथ ... रे भैया ...

ऊँचे बहुत बिरादर उनके
ऊँचा बहुत समाज
दौलत का सिंहासन नीचे
ऊपर राज - सुराज,

वो मनु के असली औरस हैं
हम तो जात - कुजात ... रे भैया ...

शौक बहुत महंगे हैं उनके
नए - नए अन्दाज़
दान - दच्छिना का भी उनके
घर में ख़ूब रिवाज़ ,

पण्डे और पुरोहित उनके
अपनी कौन बिसात ... रे भैया ...

कुनबाई भाई - चारे पर
देते हैं वो ज़ोर
इंक़लाब की बातें लगतीं
बेमतलब का शोर ,

हम हों सदा बराती उनके
उनकी रहे बरात ... रे भैया ...

वो समाजवादी साहू हैं ...