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सारी नश्वरता के बीच / रमेश ऋतंभर
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एक दिन
सब कुछ ख़ाक में मिल जायेगा
कुछ भी शेष नहीं रहेगा
यह रुप
यह सौंदर्य
यह देह
यह दुनिया
कुछ भी नहीं
हाँ, कुछ भी नहीं।
पर फिर भी
सारी नश्वरता के बीच
एक 'शब्द' बच रहेगा
समूचे ब्रह्मांड में भटकता कहीं
जो भटकते-भटकते पहुँच जायेगा
एक दिन
किसी कवि के पास
अपने सही ठिकाने पर
भाव की
एक भरी-पूरी दुनिया बनाने के लिए
सब कुछ ख़त्म होने के बाद भी।