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हर बार / रमेश ऋतंभर

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हर बार क़सम खाता हूँ
कि अगली बार किसी के बीच में नहीं बोलूंगा
लेकिन किसी को ग़लत बात करते सुन
चुप नहीं रह पाता

हर बार क़सम खाता हूँ
कि अपने काम से काम रखूंगा
लेकिन कुछ उल्टा-सीधा होता देख
हस्तक्षेप कर बैठता हूँ

हर बार क़सम खाता हूँ
कि चुपचाप सिर झुकाए अपने रास्ते पर जाऊंगा
लेकिन लोगों को झगङा-फसाद करते देख
अपने को रोक नहीं पाता

हर बार क़सम खाता हूँ
कि किसी की मदद नहीं करूंगा
लेकिन किसी को बहुत मजबूर देख
आगे हाथ बढ़ा देता हूँ

हर बार क़सम खाता हूँ
और वह हर बार टूट जाता है। S