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मोक्ष के विरुद्ध / रमेश ऋतंभर
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जब-जब मरूँ
तब-तब धारण करूँ देह
नहीं चाहिए मुक्ति
नहीं चाहिए मोक्ष
बस बीज की तरह
धरती में धंसकर पनपता रहूँ
बनता रहूँ पूरा पेड़
फलता रहूँ खूब
देता रहूँ सबको सुख-चैन
हे नियन्ता!
बार-बार
बीज बन गिरता रहूँ
धरती में
उगता रहूँ
बार-बार
बन कर पूरा पेड़
मुक्ति की कामना से दूर
बहुत दूर।