भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 18 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने समन्दरों को पाटने का समय है
अपने पहाड़ों को ढोने का
अपने अन्धेरों को पी जाने का समय है यह।

बीमार ख़याल लोगों को —
दुनिया से बाहर निकाल देने का समय है,
समय है स्वस्थ ज़िन्दगी के सपनों में रंग भरने का,
अलग-अलग धन्धों में लगे लोगों के
एक साथ उठने का समय है यह ।

आसमान की बदलती रंगत के ख़तरों से —
सावधान होने का समय है,
समय है एक साथ सोचने और बोलने का,
पृथ्वी को एकजुट होकर बचाने का समय है यह ।

सांसों पर जवान उम्मीदों के लश्कर उतारने का समय है,
समय है थकान और पस्तहिम्मती के ख़िलाफ़
लामबन्द होने का
मौत के ख़िलाफ़ ख़ुद-ब-ख़ुद
पैदा होने का समय है यह ।