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गगन परी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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लगता है इस मुन्नी के तो,
कसकर धौल जमा दूँ।

ले लेती है बिस्कुट सारे,
लेती ब्रेड हाथ से छीन।
कहती डटकर दूध पियूँगी,
भर लेती कप पूरे तीन।
लगता है अब दूध भरे ड्रम,
में इसको नहला दूँ।

क्रिकेट बाल लेकर चल देती,
लेकर जाती बल्ला।
बाहर बने ग्राउंड में करती,
जोर-जोर से हल्ला।
कहती पाँच मिनिट में झटपट,
सौ रन अभी बना दूँ।

सौ रन तो क्या, दो रन भी वह,
कभी बना न पाती।
एक बाल में कई बार वह,
आउट-आउट हो जाती।
मुझे गेंद मिल जाये तो,
ज़ीरो पर विकेट गिरा दूँ।

पर अम्मा तो हर दम कहती,
मुन्नी तो है छोटी।
नहीं समझती बात ज़रा सी,
अक्ल ज़रा है मोटी।
मैं कहता हूँ किसी वैद्य से,
चलो अक्ल छंटवा दूँ।

नहीं मगर इस पर भी अम्मा,
बापू होते राजी।
कहते हैं मुन्नी है रानी,
मुन्नी है शहजादी।
चलो-चलो इस गगन परी से,
अभी हाथ मिलवा दूँ।