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महाराजा के घर / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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सुबह-सुबह से सूरज निकला,
खिड़की में से भीतर आया।
बोला उठो-उठो अब जल्दी,
क्यों सोए अब तक महाराजा।
मैं बोला मैं महाराजा हूँ,
तो तुम खिड़की से क्यों आए,
चौकीदार खड़ा द्वारे पर,
उसे बताकर क्यों न आएँ?
आ गए हो चौका बर्तन,
झाड़ू-पोंछा करके जाना।
आगे से महाराजा के घर,
बिना इजाज़त कभी न आना।