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बल्लू बोला छूमंतर / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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मुट्ठी खोली हाथ घुमाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
जय माता कंकाली बोला।
जय कलकत्ते वाली बोला।
चुन्नू, मुन्नू, डाली बोला।
बजा-बजा कर ताली बोला।
सबको ख़ाली हाथ दिखाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
फिर से मुट्ठी बाँधी उसने।
ध्यान साधना साधी उसने।
अम-अम-अम-डम-डम चिल्लाया।
सिर के ऊपर हाथ घुमाया।
फिर मुट्ठी को फूंक फुंकाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
ज्योंही उसकी खुली हथेली।
हाथों में थी गुड़ की ढेली।
बोला आया जादूवाला।
देखो लाली देखो लाला।
सबको गुड़ का ढेर दिखाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।
हाथ घुमाकर जादू करता।
दुखी जनों के वह् दुःख हरता।
रोते मुखड़े रोज़ हँसाता।
ओंठों पर मुस्कानें लाता।
हँसते-हँसते फिर इठलाकर,
बल्लू बोला छूमंतर।