भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथी की शामत / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 21 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किया अपहरण हाथीजी ने,
चींटी का बेटा हर लाया।
उसे छोड़ने के बदले में,
रुपए एक करोड़ मंगाया।

धमकी भी दी अगर सूचना,
थाने में देने जाओगी,
अपने प्यारे बेटे को फिर,
कभी नहीं जीवित पाओगी।

गुस्से के मारे जब चींटी,
हाथी पर कसकर चिल्लाई,
अभी सूंड में घुसती तेरी,
लगता तेरी शामत आई।

डर के मारे हाथी दादा,
दौड़ लगाकर जंगल भागे।
पीछे-पीछे चींटी दौड़ी,
हाथी दादा आगे-आगे।

चींटी का बेटा तब आया,
बोला अब बिलकुल मत दौड़ो।
मैं हूँ सही-सलामत अम्मा,
अब हाथी का पीछा छोड़ो।

भरी सभा में पशुओं की हम,
अब यह मुद्दा उठवाएंगे।
किया अपहरण अगर किसी ने,
उसे जेल हम भिजवाएंगे।