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बिल्ली दीदी हज़ को / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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एक पतंगा मोबाइल पर,
लगा बात करने बिल्ली से।
बोला क्षमा करेंगीं दीदी,
बोल रहा हूँ मैं दिल्ली से।

हाल यहाँ के ठीक नहीं हैं,
अफरा तफरी मची हुई है।
शेर खा रहें हैं चूहों को,
निर्बल जनता डरी हुई है।

चूहों को तो ख़ास तौर पर,
सिर्फ़ तुम्हारे लिए बनाया।
यमदूतों ने चित्रगुप्त के,
खातों में भी यही लिखाया।

क्यों चूहों को शेर खा रहे,
शोध तुम्हें इस पर करना है।
जल्दी आओ दीदी दिल्ली,
आज बिल्लियों का धरना है।

माल तुम्हारे हिस्से का है,
कब्जा शेर जमाये बैठे।
छोटे जीव जंतुओं तक का,
माल मज़े से खाए बैठे।

सदियों से यह रीत रही है,
चूहों को बिल्ली है खाती।
सौ चूहे जब खा लेती है,
तब ही तो हज़ को जा पाती।

आगे परिश्रम कर लो दीदी,
कठिन नहीं सौ चूहे खाना।
इतनी ढीली क्यों हो दीदी,
नहीं तुम्हें क्या हज़ को जाना।