Last modified on 24 अगस्त 2020, at 10:45

दरख़्तों के मसाइल कौन समझे / विक्रम शर्मा

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:45, 24 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विक्रम शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरख्तों के मसाइल कौन समझे
ठहर जाने की मुश्किल कौन समझे

गलत राहों में भटके थे मुसाफिर
बदन के रास्ते दिल कौन समझे

जिसे समझा गया है लहर हरदम
उसे होना है साहिल कौन समझे

मिले थे तुमसे हम राहों में जाना
सो अब मंजिल को मंजिल कौन समझे

शिकायत ये कि तूने भी न समझा
हमे तेरे मुक़ाबिल कौन समझे

कोई करता नही कारे मुहब्बत
यहाँ मेरे मशागिल कौन समझे