भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं अपने ग़म छुपाना जानता हूँ / विक्रम शर्मा
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 24 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विक्रम शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं अपने गम छुपाना जानता हूँ
मुसलसल मुस्कुराना जानता हूँ
किसी कारन से हूँ खामोश वरना
बहुत बातें बनाना जानता हूँ
फ़क़त तुम उसका जाना जानते हो ?
मैं उसका लौट आना जानता हूँ
गला जो काटने आते हैं मेरा
गले उनको लगाना जानता हूँ
यूँ तो इस रब्त में अब कुछ नही है
निभाना है, निभाना जानता हूँ