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नाव जल में पड़ी, माया सन्मुख लड़ी / प. रघुनाथ

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बहर-ऐ-तवील

नाव जल में पड़ी, माया सन्मुख लड़ी, चार आंखे लड़ी, राजा चकरा गया,
बात कैसे कहूं, केसे चुपका रहूं, तेज तन का सहूं, आग लगते ही नया ।।टेक।।

भोली-भाली शकल, दीखे सोना भी नकल, कुछ ना रही अकल, जी जाल फया,
जो ये राणी बणे, तो सुहाणी बणे, खुशी प्राणी बणे, रंग होजा नया।।1।।

छाती धडक़न लगी, जान तडफ़न लगी, भुजा फडक़न लगी, दूर दिल की हया,
नाग जहरी लड़ा, शरीर पेला पड़ा, राजा चुपका खड़ा, मुख से ना हुआ बया।।2।।

बात खोले बिना, साफ बोले बिना, ठीक तोले बिना, तो लिया ना दिया,
काया किला, जो कर्म से मिला,,वो एक दम हिला, और एक दम ढया।।3।।

घना लिखता नहीं, जीव थकता नहीं, कवि बकता नहीं, इश्क भारी भया,
हाथों हाथ सुमर, दिन रात सुमर, रघुनाथ सुमर, नाम गुरु का लिया।।4।।