भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह समय / फ़ोन गुइटो (गेटे) / प्रमोद कौंसवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 28 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ोन गुइटो (गेटे) |अनुवादक=प्रमोद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम सुनाई देते हो हर जगह
सूर्य खिल उठा अपनी नियत जगह से
आओगी तुम
यक़ीन है मुझे

मेरे बाग़ीचे में तुम आती हो
जैसे किसी गुलाब की रानी की मानिन्द
लिली फूल के बीच हो तुम
लिली की तरह ही

सारे तारे-सितारे ठुमकते हैं
आसपास बाग़ में तुम्हारे साथ
जैसे तुम ठमके लगाती हो

अन्धेरा
गिरती है रात बड़ी शानदार
चान्द भी छिप जाता है अपनी गठरी में देखकर
रोशनाई चमकती है तुम्हारे मुखमंडल से कुछ इस तरह

कितनी सुन्दर लगती हो तुम बुलाती हुई
दमकते सूरज के सामने
जैसे चमकती हैं आसमाँ की दौलतें

तुम मेरे लिए एक दमक हो
ज़िन्दगी हो एक अनवरत
रोज़ एक उपहार लाती हुई ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रमोद कौंसवाल