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झूठे मक्कारों को दंड / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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मक्खीजी की कक्षा में जब,
मच्छर आया लेट।
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाया था,
पकड़े अपना पेट।

दर्द हो रहा मैडम मेरे,
आज पेट में भारी।
इस कारण से लेट हो गया,
वैरी वैरी सारी।

मक्खीजी ने कान पकड़कर,
सिर तक उसे उठाया।
बोली, झूठ बोलने में तू,
बिल्कुल न शरमाया।

अभी राह में मैंने देखा,
था तुमको गपयाते।
तिलचट्टा के साथ पकोड़ी,
आलू छोले खाते।

ऐसा कहकर मक्खीजी ने,
मुर्गा उसे बनाया।
बड़ी ज़ोर से फिर पीछे से,
डंडा एक जमाया।

झूठे मक्कारों को ऐसा,
दंड दिया जाता है।
ऐसा करने से ही जग में,
सदाचार आता है।