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बादल जी ने कहा कान में / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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कीचड़ पानी बहुत हो गया,
अब तो बिलकुल नहीं सुहाता।
कब तक मैं बरसाती ओढूँ,
कब तक सिर पर ढोऊँ छाता।
मन करता है खुली सड़क पर,
अब तो कसकर दौड़ लगाऊँ।
पानी खुले सड़क सूखी हो,
तब घर से बाहर जा पाऊँ।
ऐसा कहकर गुड़िया रानी,
लगी देखने आसमान में।
"बस दो दिन तो रुक री गुड़िया,"
बादलजी ने कहा कान में।