भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मित्र तुम्हारे जैसा मिलना / सर्वेश अस्थाना

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:19, 29 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वेश अस्थाना |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मित्र तुम्हारे जैसा मिलना।
यूं लगता रेतीले जग में
बह आया हो मीठा झरना।
नीरवता एकाकीपन की
भरी भीड़ में सूनेपन की
टूटे सपनो के जंगल में
पगडण्डी मन की ठनगन की।
तुम आये जीवंत हो गयी
युगों युगों की विवश कल्पना।।
टूटे छंद, व्याकरण रूठी
शब्द संहिता दरकी फूटी
संबंधों का बंजर आँगन
स्नेह वीथिका की छत टूटी
तुम आये तो सुदृढ़ हो गयी
मन कविता की भाव व्यंजना।।