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अब सभी कुछ छूट बैठा हैं / सर्वेश अस्थाना

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अब सभी कुछ छूट बैठा हैं तुम्हारे बिन सखे
तुम हमे आवाज़ देदो गिन रहे हैं दिन सखे।।
क्या भला अपराध ऐसा है कि प्रतिपल मृत्यु पाऊं,
हो भले त्योहार लेकिन शोक के ही गीत गाऊं।
सूर्य आता है मगर जीवन तिमिर के दास जैसा,
भोर हो या दिवस, लगता सिर्फ यम के ग्रास जैसा।
कट नही पाता है सुन लो एक भी अब छिन सखे
तुम हमे आवाज़ देदो गिन रहे हैं दिन सखे।
स्वांस की गति है मगर लगता कि जैसे मन्द है
धड़कनों के हर निलय का द्वार जैसे बन्द है।
जिस तरफ भी नयन उठते सिर्फ तेरा चित्र है
स्मरण हर पल तुम्हारा मात्र मेरा मित्र है।
उग रही है हृदय में सौ नोक वाली पिन सखे।
तुम हमे आवाज़ देदो गिन रहे हैं दिन सखे।।
बिन तुम्हारे जी नही पायेगा पपीहा जान लो,
स्वाति हो, तुम प्रेम हो इस प्यास को पहचान लो।
नियति ने क्या रच दिया है ये न पढ़ पाया सुनो,
लग रहा प्राचीर भावों की न चढ़ पाया सुनो।
मर रहा संगीत मन का सुप्त सब तकधिन सखे।
तुम हमे आवाज़ देदो गिन रहे हैं दिन सखे।।