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सौंप दूंगा मणिकर्णिका को देह अपनी / सर्वेश अस्थाना

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सौंप दूंगा मणिकर्णिका को देह अपनी
शर्त है बस तुम सदा जगमग रहोगी।
मैं नयन की ज्योति सारी सौंप दूंगा
दृष्टि भर की दृष्टि सारी सौंप दूंगा
सौंप दूंगा सूर्य मुझमें दीप्त जितने
चंद्रिका संग चंद्र सारे सौंप दूंगा।।
सौंप दूंगा दीप सारे सौंप दूंगा सभी तारे
शर्त है बस तुम सदा दप दप रहोगी।
सौंप दूंगा मणिकर्णिका को देह अपनी
शर्त है......।

सौंप दूंगा शब्द सारे भाव भी भावार्थ भी
सत्य सारे सौंप दूंगा साथ मे सत्यार्थ भी।
सौंप दूंगा गूढ़ता का महासागर
और पांचों तत्व का निहितार्थ भी।।
सौंप दूंगा स्वांस अपनी सौंप दूंगा वायु जग की,
शर्त ये है प्रज्ज्वलित पल पल रहोगी।
सौंप दूंगा मणिकर्णिका को....।

सौंप दूंगा ऊष्णता जो बसी तन में,
और जितना भाग मुझमें इस गगन का।
नीर जो मुझमें समाया सौंप दूंगा,
सौंप दूंगा ज्वाल मेरी उस अगन में।
सौंप दूंगा धरा का जो रूप मुझमें
शर्त ये है तुम सदा नभ नभ रहोगी।
सौंप दूंगा मैं तुम्हे मणिकर्णिका देह अपनी
शर्त है ......