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इतिहास, असमंजस और चींटियाँ / रंजना मिश्र
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जानती हूँ
कुछ नहीं बदलेगा
शब्दों की बेतरह भीड़ में
मेरे शब्द
अजन्मे बच्चे की अनसुनी चीख़ बनकर
असमंजस के घूरे में फेंक दिए जाएँगे
इनका मूल्यांकन भविष्य की कोई किताब नहीं करेगी
फिर भी
वह चींटी भाती है मुझे
जो इतिहास, समय और असमंजस से परे
विश्वास की उँगली थामे
मौन
अपनी क़तार बनाती चलती है।