भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिश-4 / मेटिन जेन्गिज़ / मणि मोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 3 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेटिन जेन्गिज़ |अनुवादक=मणि मोहन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूर्यास्त थका हुआ है, सूर्यास्त उदास है,
सूर्यास्त अकेला है
गिर जाने दो इसे, पीने दो इसे संसार को पुनर्जीवित होने के लिए
और उठ जाने दो जैसे जागता है कोई सुस्ती भरी नींद से

मैं जब बच्चा था तब मैंने देखा था कि कैसा महसूस होता है जन्म लेने में
पर अब मैं मृत्यु को नहीं समझ पा रहा



इस साल बगीचे में गुलाब की कलियाँ नहीं खिलीं
मेरी बारिश बन जाओ और साफ कर दो सड़कें



मैं पानी हूँ जो बह रहा है सड़कों पर
मेरी गली बन जाओ और मेरा भीड़ भरा चेहरा भी
तुम्हारे साथ बहने दो मुझे अनन्त काल तक।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन

लीजिए, अब यही कविता मूल तुर्की भाषा में पढ़िए
            Metin Cengiz
             YAĞMUR-4

Akşam yorgun akşam yalnız hüzünlü
Yağsın, yağmur içip dirilsin dünya
Uzun bir uykudan uyanır gibi

Çocukken öğrendim doğmak ne ama
Hâlâ anlamadım gitti ölümü



Bu yıl bu bahçenin gülleri açmaz
Yağmurum ol yun beni sokaklarda



Sokaklarda akıp giden suyum ben
Mecram ol benim kalabalık yüzüm
Seninle sonsuza akıp gideyim