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फटी हुई अरज़ी / असद ज़ैदी

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धीरे धीरे यह महामारी गुज़र जाएगी
इसी बीच आएगी मर्दुमशुमारी

वह पन्द्रहवीं बार आ रही होगी
आफ़त की तरह, जो बच रहे उन्हें समेटने
वह राष्ट्र बनाने जो अब नहीं बना तो कब बनेगा
2031 किसने देखा है

यह जनगणना है कि जनसंहार
किसी ने 1872 में नहीं पूछा था अंग्रेज़ बहादुर से
कि आप कौन होते है तय करने वाले हम कौन हैं
कि अब से चुन लें सब एक बस एक पहचान
कौन हिन्दू है कौन सिख कौन मुसलमान
क्यों रंग रहे हैं संख्याओं को ख़ून से

2021 में कौन पूछेगा आज की सरकार से
वाम नहीं पूछेगा मध्य नहीं पूछेगा तो क्या
दक्षिण पूछेगा दक्षिण से कि तुम कौन होते हो
कहने वाले कि कौन नागरिक है कौन अनागरिक

क्या बस कविता पूछेगी यह सवाल, क्या वही अरज़ी देगी
जनगणना आयोग को कि महामहिम इसे मुल्तवी करें
कि लोकतंत्र का हित फ़िलहाल इसी में है
अब जबकि सब कुछ बर्बरों के क़ब्ज़े में है
आपने अभी गिनती को स्थगित नहीं किया तो
हमारा वतन हमें ही डुबो देगा हमारे ख़ून में

क़रीने से तीन हिस्सों में फटी अरज़ी
दे दी जाएगी तुम्हारे हाथ में
कोई हमदर्द मुंशी कहेगा डियर सर
असली गिनती जहाँ होती है वह कोई और दफ़्तर है
और वह गिनती तो पहले ही हो चुकी वहाँ जाइए
इस आयोग के दफ़्तर में सर फोड़ने से क्या हासिल ?