Last modified on 5 सितम्बर 2020, at 12:07

लम्हा – लम्हा रात / इंदिरा शर्मा

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 5 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदिरा शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लम्हा – लम्हा जब जाग रही हो रात
तुम्हारे साथ ,
तन्हाई भी चल देती है ,
पकड़ तुम्हारा हाथ |
कितनी उन्मुक्त उड़ान उड़ते हो तुम
अपने अतीत के साथ
बन के वीतराग |
देखते रहते हो जागती आँखों से
कोई स्वप्न पुराना
भूली –बिसरी यादों के साथ |
उस भीगी सी ओस भरी अँधेरी रात और तुम
कितना मायावी , कितना मायावी हो उठता है संसार
अकेले बिस्तर पर लेते हुए भूले बिसरे ख़्वाबों के साथ |
रात का सूनापन और फ़िजाएँ करती नहीं बात
केवल जागता रहता है तुम्हारे साथ
ये तारों भरा आकाश , ख़ामोशी के साथ |
ओह !
कितनी उदास , अकेली
तुम्हारे बिना आज
ये हिज्र की रात |