भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने जो सच हैं / उत्तिमा केशरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:32, 6 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्तिमा केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुख के सपने की छाँव तले
जब वह सोती है हर रात
मानिनी की तरह
तब दीख पड़ता है
नायक का वजूद
अतीव सुन्दर
सुघड़ सौम्य
अति संवेदनशील

मानो अजन्ता की
मूर्त्तियों की तरह
तराश लिया उसका गठीला जिस्म
कमान-सी खींची
भौंहें
कजरारी आँखें
गुलाबी होंठ

और
इनके मध्य
एक सुखद सपना
जो सच लगता है।