बस्ती को छोड़ कर विभूति मल कर
क्यों बैठो सारे कामों से टल कर
क्यों सिर्फ अपनी ज़ात के अंदर सिमटो
औरों के भी सुख दुख में देखो ढल कर।
बस्ती को छोड़ कर विभूति मल कर
क्यों बैठो सारे कामों से टल कर
क्यों सिर्फ अपनी ज़ात के अंदर सिमटो
औरों के भी सुख दुख में देखो ढल कर।