कल बड़े दिनों के बाद सजन
आँखों में ना डाला अंजन
सोचा वंशीधर आएँगे
तो पग काले हो जाएँगे।
फिर रात, प्रात:, संध्या बीतीं
आहट से रही ह्रदय सीती
कब आओगे नगरी मेरी
आँखे सूनी, देह की देहरी।
कल बड़े दिनों के बाद सजन
आँखों में ना डाला अंजन
सोचा वंशीधर आएँगे
तो पग काले हो जाएँगे।
फिर रात, प्रात:, संध्या बीतीं
आहट से रही ह्रदय सीती
कब आओगे नगरी मेरी
आँखे सूनी, देह की देहरी।