भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करे तमाशा प्यारी मुनिया (कविता) / शकुंतला कालरा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला कालरा |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टोली संग मदारी आया,
मुनिया को भी लेकर आया।
पहने लहँगा लाल चुनरिया,
चकरी-सी घूमे है मुनिया।

कैसी करती खेल-तमाशा,
आओ मीना, आओ आशा।
देखो वह करतब दिखलाती,
झटपट रस्सी पर चढ़ जाती।

आडी-तिरछी, पीछे-आगे,
हाथ हिलाती उस पर भागे।
दाएँ जाती, बाएँ आती,
इक कोने से दूजे जाती।

कैसे नाचे, झूमे, गाए,
देख-देखकर मन घबराए।
पकड़े बाँस, घूमती जाती,
नहीं तनिक डरती-घबराती।

लो रस्सी से नीचे झूली,
साँसे सबकी फूली-फूली।
हाय गिरि वह, सब चिल्लाए,
बच्चे, बूढ़े सब घबराए।

चक्कर खाकर नीचे आई,
सबने थोड़ी राहत पाई।
करे तमाशा प्यारी मुनिया,
अजब निराली उसकी दुनिया।