भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घनश्याम / सपन सारन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:25, 13 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छोटी-छोटी सड़कें
लम्बे-लम्बे जाम
कैसी नागरिया में आए घनश्याम ।
छोटे-छोटे घर हैं
मोटे-तगड़े दाम
‘किचन’ में लोट लगाएँ घनश्याम ।
मीठे-मीठे बोल हैं
खारे जजमान
फाँस में फँसते जाएँ घनश्याम ।
छोटी-छोटी अँखिया
ख़्वाब तमाम
मोह माया में अटे घनश्याम ।
लघु-लघु दुख है
लम्बे-लम्बे गान
ऊँचे-ऊँचे सुर में गाएँ घनश्याम ।
धुनी-धुनी दुनिया
दौड़े चारों धाम
बांसुरी बजाते जाएँ घनश्याम ।