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आषाढ़ / सुरेश विमल

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1
आषाढ़ी बादल के
आँचल की
छांव...

कृतकृत्य हो उठा है
ओढ़कर
जलता हुआ
गांव...!

2
आकाश-ऋषि
मेघ-कमंडलु से
छिड़कता है
बूंद बूंद जल...

चिड़िया कि तरह
चोंच खोल देती है
धरती
प्यास से व्याकुल...!

3
मिट्टी में दबे हुए
बीज का
सपना है आषाढ़
ज्येष्ठ की यंत्रणाओं से
गुज़रने के बाद
लगता है
कितना अपना है
आषाढ़।

4
आषाढ़ की
पहली बूंद
धरती तक आते आते
हवा में कहीं
घुल जायेगी।

जल की
यह नन्ही गठरी
आकाशगामी किसी
प्यासे पखेरू की
चोंच में
खुल जायेगी।