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पौष / सुरेश विमल
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1
ठिठुरे हुए हाथों में
थरथराए है
पूजा कि थाली...
थपथपाए है
ठिठुरे हुए पंख
पखेरुओं के
सुबह की लाली...
2
धूप के रूमाल से
पोंछे है गुलाब
चेहरे की ओस...
रात रात भर
सताये है
चिथड़ों में लिपटे
खानाबदोशों को
पापी पौष।
3
आग
आग नहीं रही
जाड़े में...
मिमियाने लगा
आतंकित भेड़िया
आ कर
भेड़ों के बाड़े में...!
4
अलाव के आसपास
सिमट आती है दुनिया
गांव की...
बालिश्त भर दिन चढ़े
सुधि लेता है मल्लाह
नाव की...!
5
मौसम का
ओढे हुए अभिशाप
जमी हुई झील पर
जल-पाखियों का झुंड
बैठा है
भूख का
भोगते हुए संताप...!