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लिखिए आज / सपन सारन
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अगर अभी नहीं लिखोगे
तो कभी नहीं लिखोगे
आप ।
और आने वाली पीढ़ियाँ समझ जाएँगी
कि हज़ारों की तरह या तो गूंगे थे
आप ।
या तलवारी-हमलावर थे
आप ।
दोनों ही स्थितियों में — कुछ नहीं थे
आप ।
हाँ, अगर लिखकर मरे
तो तब तक ज़िन्दा रहेंगे
आप,
जब तक काग़ज़ के क़त्ल के जुर्म में
सज़ा-ए-मौत ना मुक़र्रर की जाए
आपको ।
या क्या पता किसी बड़े साहित्यिक इनाम
का नाम रखा जाए
नाम पर
आपके ।
लेकिन ये जानने के लिए
कि क्या होगा
आपका ।
लिखिए ।
आज ।
क्यूँकि ख़ून आज बह रहा है ।
और लाल रंग में रंगे बिना
अप्रासंगिक हैं
मैं और
आप ।