भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द / सपन सारन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:31, 14 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सपन सारन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
“ क्या तुम्हें गोद में ले लूँ —
आत्म-मोही बच्चे की तरह
— झूला झुला दूँ, लोरी सूना दूँ ?
क्या तुम्हें सर पर बिठा दूँ —
घमण्डी प्रेमी की तरह
— दिन का हर मिनट तुम्हारे नाम लिख दूँ ?
के तुम्हें थप्पड़ लगा दूँ
गाली दे दूँ
बाल खींचकर
अन्धेरे कमरे में
महीने भर के लिए तुम्हें
बन्द कर दूँ ? —
— बिना पानी, बिना हवा, बिना बातचीत के ?
और जब तुम ज़ोर-ज़ोर से
चीख़ो
चिल्लाओ
झुलसो
रोओ
तड़पो
सहमो
काँपो
… और हार जाओ
तब बाहर निकाल कर
चाय पे पूछूँ तुमसे
मेरे साथ रहोगे ? ”
— कवि ने कहा शब्द से ।