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पेड़ों के क्या कहने / सुरेश विमल

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पत्तों के कपड़े पहने
हैं फूलों के गहने
पेड़ों के हैं ठाठ बड़े
पेड़ों के क्या कहने।

धूप-चांदनी दोनों में ही
भैया, ये खुश रहते
फ़ुर्र फ़ुर्र उड़ती चिड़िया से
जाने क्या-क्या कहते।

भरी फलों से झोली
रस के बहते हैं झरने!

छाया देते ठंडी ठंडी
छतरी ये बन जाते
झूम हवा में पत्तों की
भई, ताली ख़ूब बजाते।

धरती की पुस्तक के-
लगते हरे-हरे पन्ने!