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गिलहरी / सुरेश विमल

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कोमल जैसे पात गिलहरी
हवा से करती बात गिलहरी।

लंबी पूंछ दुरंगी काया
कुछ दिन है कुछ रात गिलहरी।

पेड़ों के डालों पर घूमे
मुंडेरों पर आये गिलहरी।

थोड़ी-सी आहट सुनते ही
चौकन्नी हो जाए गिलहरी।

अपने भोलेपन से सबका
हर लेती है चित्त गिलहरी।

चुस्त और चौकस रहने का
सिखलाती है पाठ गिलहरी।