भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोड़ें पापड़ / सुरेश विमल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 14 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश विमल |अनुवादक= |संग्रह=काना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोड़ें पापड़ बोलें बम
ढोल बजाएँ ढ़म्मक ढम।

चने दिखाओ बंदर को
तो बंदर दौड़ा आये
कभी भंगड़ा, कभी मणिपुरी
कत्थक कभी दिखाये।

नाचें हम भी, भर लाये
जो कोई रसगुल्लों का ड्रम।

जाएँ रोज़-रोज़ पिकनिक प्त
दूर कहीं जंगल में
तोड़ें फूल कमल के ढेरों
बढ़ा हाथ दलदल में।

मिल जाये जो कहीं मुफ्त में
तांगा या कोई टम टम।