सत्तरह मई / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
(यह अधूरी कविता नाज़िम हिकमत की अन्तिम कविता है, जो उन्होंने 17 मई 1963 को अपनी मृत्यु से बीस दिन पहले, फ़्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ’युमानिते’ के मास्को संवाददाता पियरे कुरताद के निधन (14 मई 1963, फ़्रांस) की सूचना मिलने के बाद लिखी थी। पियरे कुरताद से नाज़िम की भेंट दो ही वर्ष पहले हुई थी और दोनों घनिष्ठ मित्र बन गए थे।)
ख़ुद मेरी मौत टूट पड़ी हो जैसे
मुझ पर टूट पड़ी थी यह ख़बर सत्तरह मई को ...
मास्को में धूप खिली थी
सत्तरह मई को
शुक्रवार सत्तरह मई को
लाल चौक पर शपथ ली थी नीली आँखों वाले बच्चों ने
पायनियर दल में शामिल होते हुए
और जेट जहाज़ ने ... उनके सिर के ऊपर हवा में
खींच दिए थे रेखाचित्र धुएँ के नीले आसमान पर
और तभी अपने दाँतों में सिगार दबाए
पियरे कुरताद गुज़र गया था
’प्राव्दा’ सड़क पर से सत्तरह मई को
धूप खिली हुई थी
1963
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय