Last modified on 19 सितम्बर 2020, at 18:35

सूखती आँखों की पलकें / रोहित रूसिया

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:35, 19 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित रूसिया |अनुवादक= |संग्रह=नद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूखती
आँखों की पलकें
ढूँढती हैं
एक तिनके का सहारा

झुक गए
अरमान सारे
एक डाली,
बोझ की क्या आ गयी
भूल बैठे
खुद को भी
कैसी ये
अँधियारी-सी
इतनी छा गई
कौन भीतर कर रहा
इतना जतन
उठ जाऊँ मैं
फिर से दोबारा

बज रहा है
गीत कोई
हाँ निरंतर
गूँजता है कान में
इक मुसाफिर
है भटकता
जूझता है
मेरे ही
मन प्राण में
हो गए
सब पार
मेरा हाथ थामे
पर नहीं पाता
मैं ख़ुद से ही किनारा