Last modified on 19 सितम्बर 2020, at 18:50

एक अकेला मेरा मन / रोहित रूसिया

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 19 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित रूसिया |अनुवादक= |संग्रह=नद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुनिया भर की
उथल-पुथल है
एक अकेला मेरा मन

कितने सपने
मचल-मचल के
आते कपड़े बदल-बदल के
कभी समा जाते मुट्ठी में
कभी गिरे हैं फिसल-फिसल के
एक अकेले आईने में
बँटा-बँटा-सा मेरा तन

अहसासों के
साये गुम हैं
बंद महल में
हाँ, हम तुम हैं
घने हवा के जंगल फिर भी
नन्हें पौधे क्यों गुमसुम हैं
चमकीले पिंजरे के भीतर
घुटा-घुटा-सा ये जीवन

दुनिया भर की
उथल-पुथल है
एक अकेला मेरा मन