भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कल के पन्नों पर / रोहित रूसिया

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 19 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोहित रूसिया |अनुवादक= |संग्रह=नद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कल के पन्नों पर
हम लिख दें
अपना भी इतिहास

बीज रोपते हाथों की
उष्मा बन जाएँ
चट्टानी धरती पर
झरनों से बह जाएँ
सूखे कंठों की खातिर
हो लें
बुझने वाली प्यास

सोंधी मिट्टी वाला आँगन
हर चूल्हे की आँच
और न टूटे
गलती से भी
सम्बंधों के काँच
घुटते रिश्तों में फिर
भर दें
कतरा-कतरा साँस

कोहरे की धुँधली परतों से
क्या डरना है?
लू-लपटों से भरी राह भी
तय करना है
ठानेंगे तो
हो जाएगा
बित्ते भर आकाश

कल के पन्नों पर
हम लिख दें
अपना भी इतिहास