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अपनी ही राहों में / रोहित रूसिया
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अपनी ही राहों में
हम भटके हुए
कितना भी चाहें
मगर उड़ते नहीं
और ज़मी पर
पाँव भी पड़ते नहीं
अधर में पर्दों से
हम लटके हुए
बस पतंगों तरह
सपने उड़े
और ज़रा-सी पेंच से
तकते खड़े
नीम की डाली पे
अब अटके हुए
अपनी ही राहों में
हम भटके हुए