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सूखे पत्तों की गीत / अपूर्व भूयाँ

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एक कोमल सी आहट के साथ
झड़ जाते है सूखे पत्ते
उन पत्तों की हरे यादें
मायुस करते है क्या पेड़ों को

झड़ते हुए सूखे पत्तों की कंपकंपी सी
नाचती हुई आती है एक तितली
जिसकी पतली रंगीन पंखों में
धूप की प्यारी सी अंगुली
जैसे नाज़ुक समय की रागिनी ।