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नया वर्ष / विजेन्द्र

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आज का नया दिन
मैं बहुत आभारी हूँ
तुम्हारा —
हालाँकि मैं उस तरफ
एक कदम और बढ़ गया
जहाँ से फिर वापस नहीं आना है

ओह ! नया दिन !
पूरे भरोसे से जिऊँगा तुम्हें
प्रकाश की अन्तिम बून्द तक
भले ही बहुत सी क्रूर चिन्ताओं के
घने बादल सर पर हैं
फिर भी तुम्हारा नया आगमन
मेरे लिए
आत्मा का वसन्तोत्सव है
 
नव वर्ष का एक दिन
बहुत ही ख़ुशक़िस्मत लोगों को
नसीब होता है
 
ख़ुशी से जीने की ललक
उन बड़े इरादों के साथ
जिन्हें अभी पूरा नहीं कर पाया
मुसीबतों को अपना लेने का
हौंसला मुझे तुम से मिला है
कोई लहर ऐसी नहीं
जिसमे जीने की बेचैनी न हो

ऐसा कभी न हो —
कोई पत्ती
कोई तिनका
कोई फूटता अँकुर
कोई अनाम वन फूल
मुरझा के गिर जाए
होने-न होने के बीच
मुझे क्षणभँगुर होने का
एहसास होता रहा है
 
हर लम्हा हर चीज़
बदल रही है
इस बीहड़ सफ़र में
तुम्हारा साथ
एक बहती नदी है
मैंने जब भी देखा मुड़कर
आगे की चढ़ाई मुश्किल लगी

जो पहले चलता है
अछूते पथ पर
वही योद्धा है
जो सबसे पहले नया शब्द रचने को
चालू अर्थ की थरवाह नहीं करता
वही कवि है

मुझे पता है
अर्थ मेरे शब्दों के
पीछे भागते हैं
जिस जीने की इच्छा का अन्त नहीं
वही सृजन है

ओह ! देर हो रही है
सूर्यास्त से पहले
मुझे अन्न -भरी बालियों को
अपनी रगों में
प्रवाहित देखना है
कितना अच्छा हो
तुम्हारे आगमन पर
देश के साथ
मेरा भी सर ऊँचा रहे
तो —
इस विषाद भरे जीवन को
मैं हर दिन
अपने बेशुमार देशवासिओं के साथ
तुम्हारे आने की
मुराद से जी सकूँ ।