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राजा और किताब / कुमार कृष्ण

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दोस्तो जिन दिनों सोचते हैं लोग
अपने भविष्य के बारे में
उन दिनों मैंने तय किया-
मैं किताब बनूंगा
गणित, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र की नहीं
कविता कि किताब बनूंगा
जो बार-बार बुलाये अपने पास
आज सोचता हूँ-
मैंने क्यों नहीं सोचा राजा बनने के बारे में
सुबह से शाम तक पहनता नये-नये कपड़े
बार-बार डराता नींद में
उड़ता सात समन्दर पार बार-बार
बनाता चाँद पर घर

राजा किताब से नहीं
किताब के सपने से डरता है
तभी तो सपनों को प्रतिबंधित करता है
राजा जानता है सोने की चिड़िया बनाना
जानता है सोने की चिड़िया उड़ाना
उसे आता है वशीकरण का जादू

राजा को प्रेम करने दौड़ती हुई आएंगी किताबें
राजा भी आयेगा छुपने बार-बार किताब के पास
सदियों से आ रहा है छुपता भाषा के
रंग-बिरंगे दुपट्टे में
मेरा यक़ीन मानिये
मैं नहीं आने दूँगा उसे भेस बदल कर
अपनी किताब के अन्दर।