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उम्मीद का पेड़ (कविता) / कुमार कृष्ण

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उसने मांगी दिन-रात मेरे लिए
पहाड़ जैसी लम्बी उम्र
गिनती रही अंगुलियाँ
ईश्वर के तमाम मन्त्र
उगाती रहीं हथेलियाँ सपनों के बीज
एक दिन उग गया
उसकी उम्मीद का पेड़
इस दुनिया को फिर से जानने के लिए
मैं लौट आया सर्जरी के बाद
उसने छुपा लिया फिर से
अपनी हथेलियों में ईश्वर।