भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाय के प्याले में / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 3 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकमल चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुख करने का असली कारण है : पैसा
— पहले से कम चीजें ख़रीदता है ।

कश्मीरी सेव दिल के मरीज़ को चाहिए
तो क्या हुआ ? परिश्रम अब पहले से कम
पैसे ख़रीदता है । हम सबके लिए काम
इतना ही बचा है कि सुबह वक़्त पर शेव
कर सकें । शाम को घर में चाय, और
पड़ोसिनों के बारे में घरेलू कहानियाँ,
हज़ार छोटे दंगे-फ़साद होते हैं, इतिहास
और आर्थिक सभ्यता को उजागर करने
के लिए — एक बड़ी लड़ाई नहीं होती ।

आदमी केले ख़रीदने में व्यस्त रहता है,
(और) बीते हुए, और नहीं बीते हुए
के बीच कड़ी बनकर एक छोटी-सी
मक्खी पड़ी रहती है, चाय के अधख़ाली
प्याले में !