मम्मी, लो दो एक पिचकारी,
मैं भी रँग दूँ दुनिया सारी!
मैं लेकर जब निकलूँ घर से
अपनी नन्ही सी पिचकारी,
फूल हँसें खिल-खिल धरती पर
हँस दे, हँस दे धरती सारी।
हो मित्रों के साथ ठिठोली,
उछले अंबर तक किलकारी!
आज हवाएँ रंग-रँगीली
धरती सचमुच हुई छबीली,
बोल रही कुछ धूम मचाओ
थोड़ा नाचो, तुम भी गाओ!
जिससे छलकें रंग खुशी के
लाओ, लाओ वह पिचकारी!
पिचकारी से पापा को मैं
मम्मी, बिल्कुल रंग डालूँगा,
दीदी पर भी धार पड़ेगी
गुस्सा जितना हो, झेलूँगा।
मम्मी, सँभलो, सँभलो तुम भी
इंद्रधनुष अब होगी साड़ी!