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प्रेम कविता / लुईज़ा ग्लुक / विनोद दास
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हमेशा कुछ न कुछ दर्द से बनाने के लिए होता है
तुम्हारी माँ बुनती है
वह सुर्ख़ रंग की कई रंगतों के स्कार्फ़ बनाती है
ये क्रिसमस के लिए हैं, ये आपको गर्म रखते हैं
वह बार-बार शादी करती है और अपने साथ तुम्हें रखती भी है
यह कैसे होता है
जबकि उन सालों में उसने अपने वैधव्य ह्रदय को बचाए रखा
गोया वह मरा आदमी लौट आएगा
कोई हैरत नहीं कि तुम वैसे के वैसे हो
ख़ून से डरे हुए
तुम्हारी औरतें हैं
एक ईंट के बाद दूसरी ईंट की तरह
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास