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दुनिया के मेले में (माहिया) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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78
बाहों में भर लेंगे।
जितने दुख तेरे
हम सारे हर लेंगे।
79
तुम बात नहीं करते
दुख कितना भारी
कहने से तुम डरते।
80
चुप्पी के मारे हैं
दर्द बहा कितना
चुपचाप किनारे हैं।
81
दुनिया के मेले में
खो न कहीं जाएँ
तूफाँ के रेले में।
82
इतना इसरार करें
कुछ भी हो जाए
हम ना तकरार करें।
83
तुमको जब पाया
दरिया प्यार भरा
बाहों में शरमाया।
84
आँसू निशदिन बरसे
तुमसे दूर हुए
प्राण बहुत तरसे।
85
बाहों में भर लेना
चुम्बन अधरों के
पलकों पर धर देना।
86
अब कुछ भी ना बोलो
छूकर अधरों से
आलिंगन से तोलो।