Last modified on 22 अक्टूबर 2020, at 00:04

कविता की फ़सल / कमलेश कमल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिल में भले ही
तिशनगी रही हो
प्रेम की हर आवाज़
अनसुनी रही हो
अलमस्त शब्दों के बादल में
छिपते-ढँकते रहे हों
मेरे बेगैरत अहसास
पर अश्कों की बारिश से अबकी
अच्छी हुई है
कविता कि फ़सल
एक ज़रब-सी पड़ती है
कहीं सीने के अंदर
और स्याही में बिखरते हैं
तेरी यादों के किर्चे!