भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोडवेज बस में एक लड़की / कमलेश कमल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 22 अक्टूबर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर के अपने दफ़्तर से
देर शाम वह निकली
घर के लिए
थोड़ी परेशान
थोड़ी घबड़ाई
आज देर हो गई निकलने में
उस पर मौसम भी ख़राब
फिर भी छोड़े उसने
दो-तीन बस
या कहें कि इतनी भीड़ थी
कि चढ़ने का रिस्क नहीं लिया
पर अब
हर बीतते मिनट के साथ
वह होने लगी परेशान
स्टॉप से चालीस-पचास क़दम
आगे तक की चहलकदमी
जल्दी बस आए और वह चढ़े
पन्द्रह मिनट बाद आई बस
वह झट से चढ़ी
सीट भी मिल गई
पर कुछ आगे जाकर
बस लगभग खाली हो गई
बमुश्किल पाँच-छह पैसेंजर
उसकी साँस अटक गई
हर किसी से पूछती
भाई साहब!
आप कहाँ तक जाएँगे?
'भाई साहब' पर बल
कंडक्टर उसे आश्वासन देता
मैडम, परेशान मत हों
पर हर आश्वासन उसे
षडयंत्र लगता
और हर चुप्पी
रहस्यमयी
अगले स्टॉप पर
एक-दो लोग और उतर गए
उसने झटपट बैग लिया
और हड़बड़ाकर
वहीं उतर गयी॥